बेरोजगारी क्या है ? What Is Unemployment In Hindi
What Is Unemployment In Hindi – बेरोजगारी क्या है ? हम आप को इस पोस्ट में बतायेगे की बेरोजगारी क्या है। बेरोजगारी से होने वाली समस्या क्या है और हमारे भारत में बेरोजगारी कैसे फैली है । आज हम आप को इस पोस्ट में इन सब की जानकारी देने वाले है । की हमारे देश में बेरोजगारी इस तहत तक कैसे फ़ैल गयी ।
हम आप को इस में ये भी बतायेगे की बेरोजगारी को दूर कैसे करे और बेरोजगारी की दूर करने के सरकारी उपाए क्या है । भारत में बेरोजगारी एक गम्भीर समस्या है।

इस ओर सरकार गम्भीर रूप से प्रयास भी कर रही है। यह एक सामाजिक-आर्थिक समस्या है, जो आधुनिक युग की देन है। हमारे देश में इसने बङा गम्भीर रूप धारणा कर लिया है। इसके कारण देश में शान्ति और व्यवस्था को खतरा पैदा हो गया है।
अतः इस समस्या के तत्काल निदान की आवश्यकता है।अगर आप को इस पोस्ट में बेरोजगारी के बारे में और जानकारी चाहिए । तो हमारी इस पोस्ट को अंत तक जरूर पड़े ।
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विषय-सूची
- 1 बेरोजगारी क्या है ? What Is Unemployment In Hindi
- 2 बेरोजगारी के प्रकार (berojgari ke prakar) –
- 3 ग्रामीण बेरोजगारी (gramin berojgari) –
- 4 (1) प्रच्छन्न बेरोजगारी क्या है (prachan berojgari kya hai) –
- 5 (2) मौसमी बेरोजगारी क्या है (mausami berojgari kya hai) –
- 6 बेरोजगारी के अन्य प्रकार (berojgari ke anay prakar) –
- 7 (1) प्रकट बेरोजगारी क्या है (Manifest Unemployment in hindi) –
- 8 (2) संरचनात्मक बेरोजगारी क्या है (sanrachnatmak berojgari kya hai ) –
- 9 (3) चक्रीय बेरोजगारी क्या है (chakriya berojgari kya hai) –
- 10 (4) ऐच्छिक बेरोजगारी क्या है (achik berojgari kya hai) –
- 11 (5) अनैच्छिक बेरोजगारी क्या है (anechik berojgari kya hai) –
- 12 बेरोजगारी की परिभाषा व बेरोजगारी के कारण –
- 13 (1) विकास की धीमी गति –
- 14 (2) पिछड़ी हुई कृषि –
- 15 (3) त्रुटिपूर्ण शिक्षा प्रणाली –
- 16 (4) जनसंख्या वृद्धि –
- 17 (5) कुटीर एवं लघु उद्योग का हास –
- 18 (6) तृतीयक क्षेत्र की धीमी गति –
- 19 बेरोजगारी को दूर करने के उपाय (Berojgari Ko Dur Karne Ke Upay)–
- 20 (1) श्रमगहन तकनीकों का अपनाना –
- 21 (2) तीव्र औद्योगिकरण –
- 22 (3) जनसंख्या नियंत्रण –
- 23 (4) शिक्षा प्रणाली में सुधार –
- 24 (5) छोटे उद्यमों को प्रोत्साहन –
- 25 बेरोजगारी की सीमा –
- 26 भारत में बेरोजगारी के समस्या के स्वरूप –
- 27 1. ग्रामीण बेरोजगारी –
- 28 2. शहरी बेरोजगारी
- 29 निष्कर्ष –
- 30 FAQs –
बेरोजगारी क्या है ? What Is Unemployment In Hindi
बेरोजगारी क्या है ? बेरोजगारी भारतीय अर्थव्यवस्था के समक्ष गंभीर चुनौती है! देश के लिए बेरोजगारी मानव संसाधन की हानि है! रोजगार में अनुपातिक वृद्धि के बिना होने वाली आर्थिक समृद्धि सामाजिक न्याय रहित तथा विकास से वंचित समृद्धि होती है और इस कारण यह निरर्थक होती है!
जब समाज में प्रचलित पारिश्रमिक पर भी काम करने के इच्छुक एवं सक्षम व्यक्तियों को कोई कार्य नहीं मिलता तब ऐसे व्यक्तियों को रोजगार तथा इसी समस्या को बेरोजगारी समस्या कहा जाता है! सामान्य रूप से 15 से 59 वर्ष आयु वर्ग के व्यक्तियों को आर्थिक रूप से सक्रिय अर्थात क्रियाशील माना जाता है! अतः अगर इस आयु वर्ग के व्यक्ति लाभदायक रूप से नियोजित नही हैं तो इन्है बेरोजगार माना जाता है!
भारत में बेरोजगारी से संबंधित आंकड़े राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण कार्यालय (NSSO) द्वारा जारी किए जाते हैं! भारत में बेरोजगारी के संबंध में क्षेत्रीय असंतुलन भी देखने को मिलता है! देश के कुछ क्षेत्र में रोजगार के अवसर अधिक, जबकि कुछ क्षेत्रों में कम उपलब्ध है, इससे बड़े पैमाने पर अंतरराज्यीय प्रवसन होता है! भारत में अधिकांश असंगठित क्षेत्र द्वारा अनौपचारिक रोजगार उपलब्ध कराया जाता रहा है.
बेरोजगारी के प्रकार (berojgari ke prakar) –
बेरोजगारी के निम्न प्रकार है-
ग्रामीण बेरोजगारी (gramin berojgari) –
ग्रामीण क्षेत्रों में मुख्यतः दो प्रकार की बेरोजगारी पाई जाती है
(1) प्रच्छन्न बेरोजगारी क्या है (prachan berojgari kya hai) –
जब किसी काम में जरूरत से ज्यादा व्यक्ति शामिल रहते हैं, जबकि उतने लोगों की जरूरत नहीं होती तो यह स्थिति प्रच्छन्न बेरोजगारी या अदृश्य बेरोजगारी कहलाती है!
प्रच्छन्न बेरोजगारी कृषि क्षेत्र में अधिक देखने को मिलती है क्योंकि जनसंख्या एवं खेतों का उपविभाजन पीढ़ी दर पीढ़ी बढ़ता जाता है! साथ ही गैर कृषि रोजगारों की संख्या पर्याप्त रूप से नहीं बढती है!
(2) मौसमी बेरोजगारी क्या है (mausami berojgari kya hai) –
जब हम नियोजित व्यक्ति की बात करते हैं तो हमारा तात्पर्य उन लोगों से होता है जो वर्षभर काम करते हैं! कृषि जैसे क्षेत्र में काम मौसमी होता है लेकिन कृषि संबंधी गतिविधियां वर्षभर चलती रहती है, जैसे-फसल कटाई के समय, बीज बोने, फसल उगाने, निराई करते समय काम करने के लिए लोग के लिए ज्यादा लोगों की आवश्यकता होती है
इस कारण से समय रोजगार बढ़ जाता है! एक बार जब ये काम खत्म हो जाते हैं तो क्षेत्र से जुड़े हुए कामगर विशेषकर भूमिहीन बेरोजगार हो जाते हैं! इस प्रकार की बेरोजगारी को मौसमी बेरोजगारी कहते हैं!
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बेरोजगारी के अन्य प्रकार (berojgari ke anay prakar) –
(1) प्रकट बेरोजगारी क्या है (Manifest Unemployment in hindi) –
यदि कोई व्यक्ति किसी उत्पादक कार्य में शामिल हीं न हो तो उस स्थिति को प्रकट बेरोजगारी कहते हैं या यदि कोई व्यक्ति किसी उत्पादक कार्य से अलग-थलग हो तो उसे प्रकट बेरोजगारी कहते हैं!
(2) संरचनात्मक बेरोजगारी क्या है (sanrachnatmak berojgari kya hai ) –
यदि देश के उत्पादक संस्थाओं की संख्या में कमी, तकनीकी परिवर्तन आदि के कारण रोजगार के अवसर सीमित रह जाते हों और श्रमशक्ति का एक बड़ा वर्ग बेरोजगार हो जाता है वह भी समस्या का समाधान गिरधारी कहा जाता है!
(3) चक्रीय बेरोजगारी क्या है (chakriya berojgari kya hai) –
उत्पादक संस्थाओं में समायोजन के दौरान अथवा परिवेश में परिवर्तन के दौरान रोजगार की संख्या में होने वाली अल्पकालिक गिरावट के फलस्वरूप उत्पन्न ने बेरोजगारी को चक्रीय बेरोजगारी कहते हैं!
(4) ऐच्छिक बेरोजगारी क्या है (achik berojgari kya hai) –
जब लोग वर्तमान वेतन दर पर काम करने के लिए तैयार नहीं होते हैं हैं और उन्हें अपनी संपत्ति या अन्य स्रोतों से निरंतर आमदनी होती रहती है जिसके कारण उन्हें काम की जरूरत महसूस नहीं होती है, इस स्थिति को ऐच्छिक बेरोजगारी कहा जाता है!
(5) अनैच्छिक बेरोजगारी क्या है (anechik berojgari kya hai) –
जब जब कोई व्यक्ति प्रचलित दर पर काम करने की इच्छा रखता हो किंतु कार्य की उपलब्धता न हो तो इस स्थिति को अनैच्छिक बेरोजगारी कहा जाता है!
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बेरोजगारी की परिभाषा व बेरोजगारी के कारण –
बेरोजगारी की परिभाषा – जब एक व्यक्ति सक्रियता से रोजगार की तलाश करता है लेकिन वह काम पाने में असफल रहता है तो इस अवस्था को बेरोजगारी (berojgari) कहा जाता है! समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण “यह सामान्य कार्यरत बल के एक सदस्य को सामान्य कार्यकाल में सामान्य वेतन पर और उसकी इच्छा के विरुद्ध वैतनिक कार्य से अलग रखना है!”
बेरोजगारी के कारण ( berojgari ke karan ) –
(1) विकास की धीमी गति –
बेरोजगारी का मुख्य कारण वृद्धि की धीमी गति है! रोजगार का आकार प्रायः बहुत सीमा तक, विकास के स्तर पर निर्भर करता है! आयोजन काल के दौरान हमारे देश ने सभी क्षेत्रों में बहुत उन्नति की है! परंतु वृद्धि की दर, लक्ष्य दर की तुलना में बहुत नीची है!
(2) पिछड़ी हुई कृषि –
कृषि की विधियां एवं तकनीकी पुरानी तथा खर्चीली हो चुकी है, जिससें उत्पादन की में कमी आई है तथा किसानों की आय में कमी आई है! किसान रोजगार के नए साधन ढूंढ रहे हैं क्योंकि कृषि उनका पालन पोषण नहीं कर पा रही हैं!
(3) त्रुटिपूर्ण शिक्षा प्रणाली –
हमारे देश में शिक्षा प्रणाली भी वर्तमान अंतर-पीढ़ी अंतराल के लिए कार्य करने में असफल रही है! यह वही प्राचीन प्रणाली है जिसे मैकाले ने उपनिवेश काल में प्रारंभ किया था! यह केवल साधारण एवं साहित्यिक शिक्षा प्रदान करती है तथा प्रयोगिक विषयवस्तु रहित है!
(4) जनसंख्या वृद्धि –
भारत की जनसंख्या निरंतर बढ़ रही है जिससे रोजगार की स्थिति दो प्रकार से विपरीत रूप में प्रभावित हुई, पहले तो श्रम शक्ति की संख्या का बढ़ना और दूसरा पूंजी निर्माण के लिए साधनों का कम होना!
(5) कुटीर एवं लघु उद्योग का हास –
परंपरावादी हस्तकला का अतीत बहुत उज्जवल था परंतु दुर्भाग्य से गांव की अधिकांश हस्तकला समाप्त हो गई है अथवा क्षीण हो गई है! इसका कारण एक तो विदेशी प्रशासकों की अहितकर नीति थी ,दूसरा इन्हें मशीनों द्वारा निर्मित वस्तुओं द्वारा प्रस्तुत कड़ी प्रतियोगिता का सामना करना पड़ा! परिणामस्वरूप इन श्रमिकों को रोजगार समाप्त हो गया!
(6) तृतीयक क्षेत्र की धीमी गति –
तृतीयक क्षेत्र जिसमें वाणिज्य, व्यापार, यातायात आदि सम्मिलित है, का विस्तार सीमित हैं! नये श्रम का तो कहना ही क्या, वर्तमान श्रम शक्ति को भी रोजगार उपलब्ध नहीं करवा पा रहा हैं! फलतः इंजीनियरों, डॉक्टरों, प्रौद्योगिकी रूप से प्रशिक्षित व्यक्तियों और अन्य तकनीशियनों के बीच विस्तृत बेरोजगारी है!
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बेरोजगारी को दूर करने के उपाय (Berojgari Ko Dur Karne Ke Upay)–
(1) श्रमगहन तकनीकों का अपनाना –
हमारी सरकार को चाहिए कि उत्पादन के नए क्षेत्रों के लिए श्रम-गहन तकनीक को अपनाना जाए! शुम्पीटर में भी इसे मध्यस्थ प्रौद्योगिकी नाम दिया है जो बड़े स्तर पर अधिक श्रम के समावेशन के लिए वास्तव में लाभप्रद है!
(2) तीव्र औद्योगिकरण –
औद्योगिक बेरोजगारी की समस्या के समाधान के लिए औपचारिक औद्योगिक दक्षता को पढ़ाने में नहीं थे इसका अर्थ है कि वर्तमान उद्योगों के विस्तार तथा नए उद्योगों का विकास की बहुत आवश्यकता है!
(3) जनसंख्या नियंत्रण –
जनसंख्या वृद्धि को रोकने बिना बेरोजगारी की समस्या का समाधान संभव नहीं है! कृषि और औद्योगिक उत्पादन को बढ़ाने के लिए सभी प्रयत्न व्यर्थ होंगे क्योंकि बढ़ती हुई जनसंख्या बढ़े हुए उत्पादन को निकल जाएगी. इसलिए परिवार नियोजन के कार्यक्रम को विशेषतया ग्रामीण एवं पिछड़े क्षेत्रों में सफल बनाने के लिए विशेष प्रचार की आवश्यकता है!
(4) शिक्षा प्रणाली में सुधार –
शहरी क्षेत्र में पढ़े-लिखे बेरोजगार लोगों की समस्या के संबंध में, भारत के लिए आवश्यक है कि देश के बदलते वातावरण के अनुसार शिक्षा प्रणाली को सुधारों सहित पुनः निर्मित किया जाये!
शिक्षा का व्यवसायीकरण आवश्यक है! युवा व्यक्तियों को उपयुक्त शिक्षा उपलब्ध की जाए तो विशेषता गांवों में अपनी पसंद के लघु एवं कुटीर उद्योग को आरंभ कर सकें!
(5) छोटे उद्यमों को प्रोत्साहन –
स्वरोजगार के अवसर उपलब्ध करने के लिए लघु स्तरीय उद्योगों को उच्च प्राथमिकता दी जानी चाहिए! उन्हें उदार ऋण, तकनीकी प्रशिक्षण, कच्चे माल और संरचना की सुविधाएं तथा विभिन्न सुविधाएं उपलब्ध की जानी चाहिए!
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बेरोजगारी की सीमा –
बेरोजगारी की सीमा से आशय एक ऐसी स्थिति है । जिसमे व्यक्ति वर्त्तमान मजदूरी की दर पर काम करने को तैयार होता है । परन्तु उसे काम नहीं मिलता। किसी देश में बेरोजगारी की सीमा वह अवस्था है जिसमें देश में बहुत से काम करने योग्य व्यक्ति परन्तु उन्हें विभिन्न कारणों से काम नहीं मिल रहा है।
अतएव बेरोजगारी की सीमा का अनुमान लगाते समय केवल उन्हीं व्यक्तियों की गणना की जाती है जो (अ) काम करने के योग्य हैं, (ब) काम करने के इच्छुक हैं तथा, (स) वर्तमान मजदूरी पर काम करने के लिए तैयार हैं।
भारत में बेरोजगारी के समस्या के स्वरूप –
भारत में बेरोजगारी की समस्या को दो भागों में बाँट सकते हैं –
1. ग्रामीण बेरोजगारी एवं 2. शहरी बेरोजगारी।
1. ग्रामीण बेरोजगारी –
भारत गाँवों का देश है। देश की 80 प्रतिशत जनसंख्या कृषि कार्यों में संलग्न है और शेष सेवा क्षेत्रों में जैसे – लोहार, नाई, कुम्हार आदि। इस प्रकार लगभग दो तिहाई जनसंख्या अपने कार्यों में संलग्न है। जबकि शेष दूसरों के लिए कार्य करती है।
देश के ग्रामीण क्षेत्रों में बेरोजगारी की समस्या प्रमुख रूप से अल्प रोजगार की समस्या है। लोगों को कुछ सप्ताहों या महीनों के लिए काम मिल जाता है। लेकिन वर्ष के शेष समय में बेरोजगार रहते हैं। भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में निम्न प्रकार की बेरोजगारी पायी जाती है
1. अदृश्य बेरोजगारी – किसी निश्चित क्षेत्र में आवश्यकता से अधिक लोगों का रोजगार पर लगे रहना, जिनकी सीमान्त उत्पादकता शून्य होती है। अदृश्य बेरोजगारी कहलाती है। भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में अदृश्य बेरोजगारी विशेष रूप से पायी जाती है। इसका प्रमुख कारण यह है कि इन क्षेत्रों में पारिवारिक खेती होती है।
जिसमें कृषि कार्य को परिवार के सदस्य आपस में बाँट लेते हैं। यदि कार्य कम भी होता है। तो परिवार के सभी सदस्य उसी में लगे रहते हैं। उदाहरणार्थ, यदि एक हेक्टेयर भूमि पर 10 व्यक्ति कार्यरत हैं। जिससे 10 क्विण्टल उत्पादन होता है।
यदि इस कृषि भूमि पर से 5 व्यक्तियों को अन्यत्र रोजगार दिया जाता है। तो भी कुल उत्पादन में कोई परिवर्तन नहीं होता है, तो इसका आशय है कि कृषि भूमि पर पाँच व्यक्ति अदृश्य बेरोजगार हैं। इसे छिपी हुई या प्रच्छन्न बेरोजगारी भी कहते हैं। राष्ट्रीय श्रम आयोग के अध्ययन दल के अनुसार भारत में लगभग 1.7 करोड़ व्यक्ति अदृश्य बेरोजगारी से पीड़ित हैं।
2. मौसमी बेरोजगारी – भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में मौसमी बेरोजगारी भी पायी जाती है। मौसमी बेरोजगारी वह है, जो किसी खास मौसम या समय में होती है। जैसे – फसल काटने व अगली फसल की शुरुआत करने के बीच कोई काम नहीं मिलता है। इसी को मौसमी बेरोजगारी कहते हैं। भारत में मौसमी बेरोजगारी के सम्बन्ध में अलग-अलग अनुमान हैं।
शाही कृषि आयोग के अनुसार, यहाँ 4-5 महीने लोग बेकार रहते हैं। जबकि कृषि श्रमिक प्रथम जाँच के अनुसार यहाँ कृषि श्रमिक को मात्र 218 दिन ही कार्य मिलता है और कृषि श्रमिक द्वितीय जाँच के अनुसार, यहाँ 222 दिन कार्य मिलता है। ग्रामीण श्रमिक जाँच के अनुसार, यहाँ पुरुष कृषि श्रमिक को 240 दिन व स्त्री कृषि श्रमिक को 159 दिन कार्य मिलता है। यह सभी अनुमान यह सिद्ध करते हैं कि यहाँ मौसमी बेरोजगारी विद्यमान है।
3. आकस्मिक बेरोजगारी – कभी-कभी बाढ़, तूफान, सूखा या अन्य प्राकृतिक कारणों से आकस्मिक बेरोजगारी की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।
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2. शहरी बेरोजगारी
भारत के शहरी क्षेत्रों में निम्न दो प्रकार की बेरोजगारी पायी जाती है –
1. शिक्षित बेरोजगारी – जब किसी शिक्षित व्यक्ति को उसकी इच्छानुसार नौकरी न मिले तो इसे शिक्षित बेरोजगारी कहते हैं। भारत के शहरी क्षेत्रों में शिक्षित बेरोजगारी की समस्या गम्भीर रूप धारण करती जा रही है।
2. औद्योगिक बेरोजगारी – औद्योगिक क्षेत्र में बेरोजगारी की समस्या जनसंख्या की तीव्र वृद्धि के कारण उत्पन्न हुई है। औद्योगिक बेरोजगारी से तात्पर्य उद्योगों, खनिज, व्यापार, यातायात, निर्माण आदि में काम करने के इच्छुक बेरोजगारों से है।
औद्योगिक बेरोजगारी का प्रमुख कारण यह है कि शहरों में उद्योगों में वृद्धि के कारण जनसंख्या गाँवों से शहरों में आकर बसने लगी। फलस्वरूप औद्योगिक क्षेत्रों में श्रमिकों की पूर्ति बढ़ गयी, लेकिन इस अनुपात में अभी उद्योग धन्धे स्थापित नहीं हो पाये हैं, जो समस्त जनसंख्या को रोजगार दे सकें।
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निष्कर्ष –
हम उम्मीद करते है की आप को इस पोस्ट में समझ आ गया होगा की बेरोजगारी क्या है ? और इस को कैसे दूर कर सकते है । और बेरोजगारी फैलने के क्या कारण है । यह बेरोजगारी किस के वजह से फैली है । आशा करते है की आप को इस पोस्ट में आप के सारे सवालो के जवाब मिल गए होंगे । आप को हमारी ये पोस्ट कैसी लगी हमे कमेंट कर के जरूर बताये ।
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FAQs –
प्र. बेरोजगारी क्या है ? |
जब एक व्यक्ति सक्रियता से रोजगार की तलाश करता है लेकिन वह काम पाने में असफल रहता है तो इस अवस्था को बेरोजगारी( unemployment ) कहा जाता है! समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण “यह सामान्य कार्यरत बल के एक सदस्य को सामान्य कार्यकाल में सामान्य वेतन पर और उसकी इच्छा के विरुद्ध वैतनिक कार्य से अलग रखना है!” |
प्र. बेरोजगारी की परिभाषा क्या है ? |
जब एक व्यक्ति सक्रियता से रोजगार की तलाश करता है लेकिन वह काम पाने में असफल रहता है तो इस अवस्था को बेरोजगारी( unemployment ) कहा जाता है! |
प्र. प्रच्छान बेरोजगारी क्या है ? |
जब किसी काम में जरूरत से ज्यादा व्यक्ति शामिल रहते हैं, जबकि उतने लोगों की जरूरत नहीं होती तो यह स्थिति प्रच्छन्न बेरोजगारी कहलाती है! प्रच्छन्न बेरोजगारी कृषि क्षेत्र में अधिक देखने को मिलती है क्योंकि जनसंख्या एवं खेतों का उपविभाजन पीढ़ी दर पीढ़ी बढ़ता जाता है! साथ ही गैर कृषि रोजगारों की संख्या पर्याप्त रूप से नहीं बढती है. |
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